किसी भी राष्ट्र को मिष्ठानमा एवं राष्ट्रहित के पवित्र नाम से अनुप्राणित होकर अपनी सगा प्रतिमा एवं कार्यशक्तिको राष्ट्र के हित में करने वाता होती है। शक्तियों के विकास की यह शिक्षा मनुष्य को उसकी अवस्था में ह ही जा सकती है। जब यह कच्ची मिट्टी की तरह गीला और लीना होता है उसे जिस किसी उन्नत दिशा में ले जाना बा ले जाया जा सकता है। हमारे यहाँ तो बालक को तो ईश्वर रूपमा मात्पर्य है कि उसमें पूर्णता की अन् संभावनाएं विद्यमान है और उसका मन कोमल एवं राहत होता है। इस आयु में उसमें अनमा जिज्ञासा होती है और किसी भी आदर्श को भत्रि में बाल लेने की अपूर्वा के सरकार शिक्षा की भाषा और उसके अनुभव से होती है।
भारतीय शिक्षा कार्य संस्कार होता है। शिक्षा उस व्यवहार का नाम है जो बालक के जीवन एवं आचरण में परिवर्तन लाती है। सर्वांगीण शिक्षा छात्र छात्राओं के शारीरिक, मानसिक बौद्धिक नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास का आयोजन करती है। किन्तुम्बिना यह है कि शिक्षा के नाम पर हमारे देश में कॉन्वेन्ट विद्यालयों के माध्यम से जो पाश्चात्य संस्कृति प्रवेश कर गयी है, वह धीरे-धीरे हमारे भारतीय संस्कारों को लुप्त करती जा रही है। लार्ड मैकाले की यह शिक्षा पद्धति शिशु को इस तरह प्रभावित करती है कि युवा होने तक अपनी संस्कृति राष्ट्रीयता समाजिकता मानवीयता, नैतिक-परित्र जैसे बिन्दुओं पर ध्यान न देकर पूर्ण रूप से दिमित हो चुका होता है। किसी भी आदर्श राष्ट्र का निर्माण के रहने वाले संस्कारित नागरिकों से होता है। आज के छात्र छात्रा ही कल के भावी कर्णधार होंगे जिसे शिक्षा के माध्यम से ही संस्थापित करके आदर्श राष्ट्र के निर्माण में लगाया जा सकता है किन्तु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह विन्तन का विषय है कि यदि भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत संस्कृति शिक्षा का माध्यम ही उचित नहीं होगा तो आदर्श राष्ट्र की कलाना कैसे की सकती है आखिर भारत की विशेषता क्या रही है यह विशेषता है उस सस्कारमयी वात्सल्य से परिपूर्ण भारतीय संस्कृति का अदनान करने वाली ममता के आधार पर समतामूलक शिक्षा पद्धति किन्तु यह दुर्भाग्य है कि धीरे-धीरे अंग्रेजी माध्यम की यह नयी पीढ़ी उन्हें समाप्त कर रही है। यही कारण है कि हमारे देश के युवा वैज्ञानिक चिकिअन्वेषक आदि विदेशों की तरफ आकर्षित होकर वेजी से पलायन कर रहे है। यदि हमारी प्रतिमा चली गयी वा प्रतिनी भारत जनीन का मात्र एक टुकड़ा म जाएगा।
संस्कारित शिक्षा के माध्यम से ही राष्ट्र के उत्थान में सहयोग देना होगा आत्ममंथन करना होगा तथा आमा का जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लागू करना है जिसके द्वारा भारत स्वरूप व मानसिक रूप से स्वतंत्र देता रातल पर जीवन विकास की वास्तविक अनुभूति तथा संस्कारित शिक्षा माध्यम से छात्र/छात्राओं का पारित्रिक प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक विकास करें और प्रत्येक छात्र/छात्रा को इस स्वर्णिम युग का अग्रदूत बनाये ताकि आने वाले दिनों में का गौरव सूर्य विश्व में प्रतीक बने और भारत एक बार फिर विश्वगुरू कहलाये।
धन्यवाद
महेन्द्र यादव
संस्थापक / प्रबन्धक