शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र की संस्कृति का संरक्षण, संवर्धन एवं हस्तान्तरण होता है। छात्र/छात्रा शिक्षा के माध्यम से ही अपने व्यक्तित्व का विकास तथा राष्ट्रीय संस्कृति को ग्रहण कर सकते हैं। शिक्षा हमारे अन्तर्निहित अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर ज्ञानरूपी प्रकाश को प्रज्जवलित करती है। यह व्यक्ति को सभ्य एवं सुसंस्कृत बनाने का एक सशक्त माध्यम है। यह हमारी अनुभूति एवं संवेदनशीलता को प्रबल करती है तथा वर्तमान एवं भविष्य के निर्माण का अनुपम स्रोत है। आज का मानव अपने मानवीय मूल्यों के प्रति विमुख हो चुका है। परम्परागत आदर्श समाप्त होते प्रतीत हो रहे हैं। हमारे आदर्श एवं विश्वास समाज में अनुपस्थित होते जा रहें हैं। ऐसी स्थिति में उचित शिक्षा ही हमारे मूल्यों को विकसित करने में सार्थक कदम उठा सकती है।
Read moreकिसी भी राष्ट्र को मिष्ठानमा एवं राष्ट्रहित के पवित्र नाम से अनुप्राणित होकर अपनी सगा प्रतिमा एवं कार्यशक्तिको राष्ट्र के हित में करने वाता होती है। शक्तियों के विकास की यह शिक्षा मनुष्य को उसकी अवस्था में ह ही जा सकती है। जब यह कच्ची मिट्टी की तरह गीला और लीना होता है उसे जिस किसी उन्नत दिशा में ले जाना बा ले जाया जा सकता है। हमारे यहाँ तो बालक को तो ईश्वर रूपमा मात्पर्य है कि उसमें पूर्णता की अन् संभावनाएं विद्यमान है और उसका मन कोमल एवं राहत होता है। इस आयु में उसमें अनमा जिज्ञासा होती है और किसी भी आदर्श को भत्रि में बाल लेने की अपूर्वा के सरकार शिक्षा की भाषा और उसके अनुभव से होती है।
Read moreमहाविद्यालय में प्रवेश करने के दिन से ही संस्थान के नियम एवं सिद्धांतों का अक्षरशः पालन करना अनिवार्य है। इसके अभाव में किसी भी छात्र एवं छात्रा को किसी भी समय महाविद्यालय से निष्कासित किया जा सकता है। महाविद्यालय में समय का विशेष महत्व है। महाविद्यालय में समय से आने पर प्रवेश सम्भव है।
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